ये ना कोई गाथा है ना कोई कथा, ये तो है एक टमाटर की व्यथा। जी हाँ,सही ही पढ़ा आपने!!! एक टमाटर की कहानी उसी की ज़ुबानी! हर एक टमाटर की … लाल या हरे, छोटे या मोटे, नरम या कड़क …. हर टमाटर की!!
एक टमाटर साफ़ सुथरा सा, पड़ा हुआ था एक बाज़ार की टोकरी में ।कुछ हैरान सा था कि क्यू और कैसे आया वो इस टोकरी मे ।ऐसा लग रहा था उसे जैसे कोई लम्बा सफ़र तय करके आया हो ।सर भारी था जैसे बहुत धक्का खाया हो, कई बार उठाया और पटका गया हो जैसे ।किसी ने पानी के छींटे मारके जगाया था और उसे फिर टोकरी में सजाया था ।ख़ैर पीछे का उसे कुछ ख़ास याद नही था पर उसने देखा की टोकरी में है और भी टमाटर कई।आसपास के टमाटरों से राम राम कि और सोचने लगा शायद यही जीवन है कि टोकरी में पड़े रहो।
फिर शाम हुई,बाज़ार में अजीब शोर हलचल हुई।टोकरी के पासकुछ अलग ही बड़े बड़े दोपाये दिखायी देने लगे, गौर से देखा तो एक दोपाया टोकरी के इस तरफ़ भी था। सामने जो आ रहे थे वो हम सभी टमाटरों को छूँ रहे थे, यूँ कहिए कि परख रहे थे।थोड़ी देर में समझ आया की ये दोपाये टमाटरों को बेच और ख़रीद रहे थे। फ़िर मेरी भी बारी आयी, एक कोमल हाथ ने मुझे और कुछ टमाटरों को उठाया और टोकरी कि दूसरी तरफ़ के कठोरहाथों में दे दिया । उफ़्फ़, उन कठौर हाथों ने मेरे कोमल त्वचा को जैसे खरोंच दिया और फिर तौल दिया और एक अँधेरे झोले में ढकेल दिया । झोले में ऐसा लगा,मेरे नीचे और बहुत सी सब्ज़ियाँ थी । जो गुर्रा कर कह रही थी कि ये टमाटर हमेशा सबसे ऊपर ही क्यूँ बैठते हैं हर बार। मैंने सोचा -हर बार?? मुझे कुछ याद क्यूँ नही? थोड़ी देर झोले में रेहके सोचा शायद यहीं जीवन है ।
झोले में काफ़ी देर तक हिंड़ोला खाके दम भर चुका था और लगा झोला जीवन से तो टोकरी जीवन अच्छा था ।कि तभी झोला कहीं रखा गया ।भीतर तो अँधेरा था पर बाहर से कुछ चहल पहल कि आवाज़ आ रही थी। मेरी घबराहट बड़ रही थी कि अब जीवन क्या होगा? फिर झोले के भीतर वही कोमल हाथ आए और एक एक करके सभी सब्ज़ियों को बाहर निकालने लगे। हम सब को प्यार से धोया गया और सुखाया गया। बहुत ही आनंद आया । लगा क्या बढ़िया जीवन है । और सुख यात्रा आगे बड़ी और उन्ही कोमल हाथों ने मुझे उठा कर के ऐसे बड़े कमरा नुमा डब्बे में रखा जिसका मैं वर्णन नही कर सकता ।ऐसी शीतलता थी उस डब्बे में ।मेरी त्वचा के लिए मानो अनुकूल !! आह अपार सुख- अद्भुत !!! अगर ये जीवन है क्या कहना!!!
ऐसे शीतल विहार में नींद किसे ना आये।ऊपर वाले को धन्यवाद करते नहीं थक रहा था मैं।और भला हो उन कोमल हाथों का जो मुझे यहाँ ले आए। कहाँ वो मैली कूचेलि टोकरी और कहाँ ये आलीशान ठण्डा डब्बा। यही सोचते सोचते कब मैं सो गया पता नही !! और क्या नींद आयी जैसे पहले कभी सोया ही नही था। कितनी देर हुई सोते सोते पता नही। बीच में जब आँख खुली तो यूँ लगा जैसे मेरे साथी टमाटर और दूसरी सब्ज़ियाँ कुछ कम से नज़र आये। पर नींद की ख़ुमारी ऐसी थी कि मैं बिना कुछ और सोचे फिर सो गया।नींद मेरी टूटी जब उन्ही कोमल हाथों ने मुझे उठाया और ठंडे डब्बे से बाहर निकला। निकला तब तक तो ठीक था मगर ये आग के पास क्यूँ रख दिया ???
ये सब देखने वाला मैं अकेला नही था मेरे साथ एक टमाटर और भी था। मेरी आत्मा काँप गयी जो मैंने देखा कि उन दयावान कोमल हाथों ने मेरे साथी को छुरी से चीर दिया और आग पर रखे बर्तन में फेंक दिया। इतनी क्रूरता!!!! देखते ही देखते उन हाथों ने मुझे पकड़ा और मेरे दो टुकड़े कर दिये। एक हिस्से को आग में झोंक दिया…….आह,ऊह और सारी कराहें निकल गयी पर उस दुष्टा को दया न आयी। बिलकुल भी न आयी।मगर ये क्या मैं तो मर चुका हूँ ना?? फिर मैं कैसे इसे कोस पा रहा हूँ?? बहुत आश्चर्य हुआ की -अरे ये आवाज़ तो मेरे दूसरे हिस्से से आ रही है। क्या एक टमाटर का जीवन ऐसा होता है। मर कर भी ना मरा !!!! ये क्या अधमरा जीवन है हाय !
मैं ख़ुद से ही तर्क वितर्क कर रहा था और अपने टमाटर होने पे रो रहा था। तभी उस दुष्टा ने मेरे आधे हिस्से हो हाथ में लिया और निहारने लगी। ग़ुस्सा तो मुझे इतना आ रहा कि लगा उसके मुँह पर मैं फट ही जाऊँ। क्या से क्या कर दिया एक पल में । अब क्या निहार रही है??? अब उसने एक अजीब हरकत की , एक पिन से मेरे इस हिस्से के बीजों को बड़े प्यार से एक एक कर निकालने लगी! मैंने सोचा अब क्या पोस्ट्मोर्टम ही कर देगी। ख़ूनी तो ख़ुद ही है क्या खुद को सज़ा देगी।बड़ी आयी !!!! फिर धोखा किया उसने,बीजों को एक कटोरी में रख के बचे हिस्से को भी आग में झोंक दिया। सब खतम ,बस सब खतम ही कर दिया । इतना रोया मैं कि क्या बताऊँ !
पर ये अभी भी मेरी आवाज़ कैसे आए जा रही है?? अचंभित था मैं , की मेरे बीज में भी आवाज़ थी और जीवन था। पूरी तरह अभी भी नही मरा था मैं। क्या हो रहा था ये सब। अब तो जीने कि आस भी ना बची थी पर जीवन तो फिर भी बाक़ी था। मेरे बीज उस कटोरी में पड़े रहे हो और सूखते रहे । लगा अंत आ गया । अब तो शायद ये मेरी आवाज़ बंद हो जाएगी।
पर वो हाथ फिर आए आए और बीजों को उठाकर मिट्टी में गाड़ दिया। मैंने सोचा चलो मेरा अंतिम संस्कार आख़िरकार हो गया और अब मैं सदा कि लिए सो गया। उस मिट्टि में मेरी आँखें बंद हुईं और बड़ी शांति हुई ।अन्ततःसन्नाटा छा गया ।आख़िरकार मेरी वो आवाज़ भी लुप्त हो गई।
लेकिन ये क्या ???????????? मेरी नींद फिर खुली जब सूरज की किरण बीज पे पड़ी। बीज में अंकुरण हो रहा था और साँसे फिर चलने की क़ोशिश कर रही थी। ना चाहते हुए भी मैं जीवित हो रहा था।नही नही नही….प्रभु!!मुझे चैन से मरने भी ना मिला कुछ देर।
छन्न से अंकुर फूटा और मैं नन्हा कोपल बनकर बाहर निकला। कोपल से मैंने देखा, हाथ जिसने मुझे मार दिया वो मुझे पानी पीला रहें है, खाद खिला रहे है ।मेरे अंदर फिर जीवन जगा रहे हैं।दिन ब दिन मैं बढ़ने लगा और एक पौधे बदलने लगा । जीने कि चाहत फिर आ गयी और मैं फिर से खुश होने लगा। मुझे ख़ुशी से बड़ते देख वो कोमल हाथ भी खुश होते थे।
मैं फिर सोचने लगा कहाँ कहाँ से धक्के खाके मैं संभलने लगा। अब मुझमें फूल आने लगे और फिर फूलों से फल भी निकलने लगे। और टमाटर का पौधा टमाटरों से लद गया। मुझे अपने जीवन का चक्र समझ आया। उस टोकरी में कहाँ से पहुँचा ये रहस्य खुलता जा रहा था ।मददगार क्यूँ दुश्मन बना और फिर दुश्मन से जीवन दाता बना ये पहेली अब मुझे सुलझती दिखी ।
मेरे छोटे दिमाग़ को को इतना ज्ञान आया कि हम रहे ना रहे, ये जीवन हमेशा रहेगा।हम चाहे थक जायें पर ये जीवन यूँ ही चलेगा। कभी हम चाहेंग़े कि ये जीवन थम जाए, कभी चाहेंगे तेज़ी से निकल जाए या कभी चाहेंगे कि ख़त्म ही हो जाये । मगर हमारे चाहने से क्या होगा भाईसाब !!! जीवन की अपनी गति है अपना वेग है वो ना किसी के लिए थमा है, ना भागा है और नही ख़त्म हुआ है। जीवन चक्र है जो चलता ही जाएगा । ये रहस्य सबको समझ तो आएगा पर याद कभी ना रहेगा। 😀
तो ये थी एक तुच्छ टमाटर की आप बीती । निरा टमाटर बात पते कि कर गया। मेरे और आपके दिल को छू गया। गरीब बेचारा, कभी कट गया,कभी पिस गया ,कभी आग में झुलस गया और तो और जमीन में गड तक गया । क्या होता अगर उसको ये रहस्य याद रह जाता??? क्या वो वाह -वाह करते टोकरी कि खरोंच झेलता ? क्या काटे जाते वक्त मुस्कुराता? या नाचते हुए आग में कूद जाता? बताइए!!!!!
Wow .. what a theme…super interesting… nice flow and interesting read 🙂
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Good imagination decorated with nice words. An untouched part of Tomato’s autobiography.
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Thank you for reading it 🤗😀
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Bahut hi badhiya tarike se likhi gayi ek tamatar ki aatmkatha.
Dusri kahaniyo ka bhi intezar rahega…
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😊😊😊🤘
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वाह! बहुत ही अच्छी और सच्ची बात कह गई ये टमाटर की आत्मकथा…👌👌👌
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🙏🏻🙏🏻😀
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अत्यन्त ही संवेदनशिल टमाटर को आप बीती थी। दिल को छू लोय।
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अत्यन्त ही संवेदनशिल टमाटर को आप बीती थी। दिल को छू लोय। nice story
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Thanks divya 😊 mujhe accha laga ki tune pahda 😀😀
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Very nicely written .What I liked is it creates a flow in reading as well. Well done!
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Thank you Madame 😍😘
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Very nicely narrated… Walking through the memory lanes…. Right use of words, emotions, analogy and interesting plot created to weave the story
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Thank you 🙏🏻 🙏🏻🙏🏻
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