मेरा शहर अब मेरा सा नही दिखता….
मकान ही मकान हर तरफ़ खेलने का अब मैदान नही दिखता……
गाड़ियाँ ही गाड़ियाँ रास्तों पर आम आमरुद का कोई पेड़ नही दिखता….
धूल ही धूल हर तरफ़ साफ़ बुहरा सा आँगन नही दिखता…..
भीड़ भीड़ और भीड़ है …. चिड़ियों का चहचहाता झुंड नही दिखता
बिजली केबल की तारो का है जाल वो नीला खुला आसमान नही दिखता…….
बदला है सब इतना कि…. अब मेरे बचपन का घर भी मेरा सा नहीं दिखता !!!
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